"आत्माधिकः कलादिभिर्नभोगः सप्तनामष्टानां वा" जैमिनी ज्योतिष में आत्मकारक ग्रह को “आत्मा का दर्पण” कहा गया है। आत्मकारक ग्रह वह ग्रह होता है जिसने जन्मकुंडली में सबसे अधिक अंश प्राप्त किए हों।यह ग्रह आपकी आत्मा के गहरे उद्देश्य, आपके जीवन की सीख और संबंधों के अनुभवों को दर्शाता है। जब आत्मकारक ग्रह की दशा–अंतरदशा या उस पर शुभ/मुख्य गोचर चलता है, तब प्रायः जीवन में ऐसे लोग मिलते हैं जो आत्मा के विकास के लिए निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 🔺किंतु आत्मकारक ग्रह कि शुभता/अशुभता का ध्यान करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि वह संबंध,परिवर्तन या घटना सुख या दु दोनों के लिए आपके जीवन में आ सकती है।
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You are the native of Scorpio Ascendant. The powerful ascendant of of Warrior Mars. Scorpio rising are energetic, enthusiastic, confident and have a charismatic, energetic persona.A Scorpion Ascendant is not someone who can be pushed around or taken for granted. They want to be respected, honoured...
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मन के हारे हार है ,मन के जीते ,जीत मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। हार या जीत का निश्चय मन से ही होता है ।कैसे मन हरा देता है और कैस मन ही जीता देता है। क्या यह सिर्फ कहने भर की बात है, या फिर इसमें कोई सच्चाई भी है जिसे समझने की जरूरत है। इसे हम साधारण से साधारण भाषा में समझने की कोशिश करते हैं ।
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जीवन यात्रा में हम बहीर्गामी होते हैं और इसे ही जीवन का मूल समझ बैठते हैं ,जबकि स्थिति इसके विपरीत है । स्वयं को जानने का प्रयास कदाचित ही करते हैं और यही हम सबसे बड़ी भूल करते हैं ।स्वयं को सर्वश्रेष्ठ रूप से जाने बिना सफलता सुनिश्चित की ही नहीं जा सकती क्योंकि हम अपने आप में संपूर्ण हैं ,स्वयं हैं ,भिन्न है यही भिन्नता श्रेष्ठता में स्थापित करती है।स्वयं को जानना और स्वयं को परम में स्थापित करना सफलता का सबसे बड़ा सूत्र है क्योंकि इस रूप में हम अपनी सकारात्मक शक्तियों का सर्वश्रेष्ठ लाभ ले पाते हैं।स्वयं को जानने के सफर में जो सबसे ज्यादा सहायक हो सकता है वह है ज्योतिष ....
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जीवन यात्रा में हम बहीर्गामी होते हैं और इसे ही जीवन का मूल समझ बैठते हैं ,जबकि स्थिति इसके विपरीत है । स्वयं को जानने का प्रयास कदाचित ही करते हैं और यही हम सबसे बड़ी भूल करते हैं...
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जीवन यात्रा में हम बहीर्गामी होते हैं और इसे ही जीवन का मूल समझ बैठते हैं ,जबकि स्थिति इसके विपरीत है । स्वयं को जानने का प्रयास कदाचित ही करते हैं और यही हम सबसे बड़ी भूल करते हैं...
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