वास्तु तथास्तु

वास्तु तथास्तु

blog
  • 01/11/22

वास्तु तथास्तु

वास्तु वास्तव में है क्या? वास्तु एक व्यवस्था है जो ब्रम्हांडीय ऊर्जा के साथ हमारा सुंदर सामंजस्य स्थापित करता है। जिससे हम एक सुंदर और सफल जीवन का ताना-बाना बुन सके। पंचमहाभूत इस ब्रम्हांड की उर्जा का सबसे बड़ा स्रोत हैै, यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे ,इन्ही पंचमहाभूत से हमारा शरीर बना है  । अंदर के पंच महाभूतों का बाह्य पंचमहाभूत से सामंजस्य वास्तु स्थापित करता है । अग्नि, जल, वायु ,पृथ्वी और आकाश।
आज कल अधिकतर घर वास्तु और फेंगशुई (चीन का वास्तुशास्त्र) के सिद्धांतों के आधार पर बन रहे हैं। वास्तु और फेंगशुई पूरी तरह से सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के सिद्धांतों पर ही काम करते है। मान्यता है कि यदि घर में सकारात्मक वातावरण और सकारात्मक वस्तुएं रहेंगी, तो निश्चित ही हमें कार्यों में भी सफलता प्राप्त होगी और धन संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलेगी। वास्तु में मुख्यतः आठ दिशाएं मानी जाती हैं और एक ब्रह्म स्थान। यदि घर में किसी दिशा में कोई गलत वस्तु रखी है, तो इसका बुरा असर वहां रहने वाले सभी सदस्यों पर पड़ता है।
पांचों तत्वों का सही सम्मिश्रण जिस घर में होता है उस में सुख शांति व समृद्धि का वास होता है ।
बहुत सरल है वास्तु के इस सिद्धांत को समझना।
आइए कुछ विस्तार से समझते हैं इन आंठों दिशाओं के बारे में। कैसे यह जीवन सुख समृद्धि व सकारात्मकता से परिपूरित करती हैं।
उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण)
*ईशान कौण जो जल तत्व का प्रतीक है तथा यह वास्तुपुरुष का सिर है , अतः इसकी शुद्धता हमारा कर्तव्य है।
यह दिशा दैवीय शक्तियों के लिए श्रेष्ठ होती है। इस दिशा का प्रतिनिधित्व स्वयं दैवीय शक्तियां ही करती हैं। इसलिए यहां मंदिर होना बहुत शुभ रहता है। इस स्थान पर हमेशा साफ-सफाई रहनी चाहिए। इस स्थान पर मंदिर के साथ ही पानी से संबंधित उपकरण भी रखे जा सकते हैं। यदि कोई स्त्री अविवाहित है, तो उसे इस कोने में सोना नहीं चाहिए। इस कोने में कोई अविवाहित स्त्री सोती है तो उसके विवाह में विलंब हो सकता है या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। घर के इस कोने में बाथरूम और टॉयलेट नहीं होना चाहिए। साथ ही, यहां भारी वस्तुएं भी नहीं रखें।
दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय कोण)*
अग्नि कोण, अग्नि तत्व का प्रतीक ,घर की शक्ति , ऊर्जा और तरक्की का प्रतीक है ।?इस कोण का प्रतिनिधित्व अग्नि करती है। इसलिए इस दिशा में विशेष ऊर्जा रहती है। इस स्थान पर रसोईघर होना सबसे अच्छा रहता है। यहां विद्युत उपकरण भी रखे जा सकते हैं। अग्नि स्थान होने के कारण यहां पानी से संबंधित चीजें नहीं रखनी चाहिए। आग्नेय कोण में खाना भी नहीं खाना चाहिए, यानी इस स्थान पर डायनिंग हॉल अशुभ होता है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण)
*नैऋत्य कोण, पृथ्वी तत्व का प्रतीक,  स्थिरता  का प्रतीक, इसका भारी होना व भरा रहना ही शुभ माना जाता है।
इस स्थान का प्रतिनिधित्व पृथ्वी तत्व करता है। इसीलिए यहां प्लांट रखना बहुत शुभ होता है। पौधों में यह शक्ति होती है कि वे हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर सकते हैं। इस स्थान पर मनी प्लांट गुलाब आदि रखेंगे, तो आपके घर की पवित्रता और सकारात्मकता बनी रहती है। आपकी तिजोरी के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान। स्थिर लक्ष्मी का वास होता है यहां।
यहां मुख्य बेडरूम भी शुभ फल देता है। इसके अलावा, यहां स्टोर रूम भी बनाया जा सकता है। नैऋत्य कोण में भारी वस्तुएं भी रखी जा सकती हैं। यहां कार पार्किंग का स्थान का बनाया जा सकता है। इन बातों का ध्यान रखेंगे तो आपके घर में ऊर्जा का संतुलन बना रहेगा।
उत्तर-पश्चिम दिशा (वायव्य कोण)
*वायव्य कोण ,जोकि वायु तत्व का प्रतीक है , गतिशीलता का कारक है ।जिसमें  गतिशील वस्तुओं को रखा जाना शुभ माना जाता है। क्योंकि हवा को कभी बांधा नहीं जा सकता।
वायु इस कोण का प्रतिनिधित्व करती है। इस वजह से यहां खिड़की या रोशनदान का होना बहुत शुभ रहता है। यहां ताजी हवा के लिए स्थान होगा तो हमें स्वास्थ्य संबंधी कई लाभ प्राप्त होते हैं। यहां ताजी हवा आने का स्थान होगा, तो कुछ ही दिनों में पारिवारिक रिश्तों में मधुरता आ जाती है।
घर में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता है और ना ही स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां रहती हैं। इस स्थान पर कन्या का कमरा बनाया जा सकता है। यहां मेहमानों के रहने की व्यवस्था की जा सकती है। यहां दूसरे फ्लोर पर जाने के लिए सीढ़ियां भी बनाई जा सकती हैं।
पूर्व दिशा
इस दिशा से आपके घर में खुशियां और सकारात्मक ऊर्जा आती है। इस वजह से यहां मुख्य दरवाजा बनाया जा सकता है। यहां खिड़की, बालकनी बनाई जा सकती है। यहां पर बच्चों के लिए कमरा भी बनवाया जा सकता है। यदि आप इस स्थान पर पढ़ाई या अध्ययन संबंधी कार्य करते हैं तो आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। आपके घर में यदि यहां रसोईघर है, तो खाना बनाते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
यदि यह संभव न हो तो आप अपना मुख पश्चिम दिशा की ओर भी रख सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि इस स्थान पर खाना बनाते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं और यह वास्तु दोष उत्पन्न करता है।
पश्चिम दिशा
वास्तु के अनुसार, इस दिशा के स्वामी वरुण देव हैं। इस स्थान पर डायनिंग हॉल बनवा सकते हैं। यहां सीढ़ियां बनवाई जा सकती हैं। यहां कोई भारी निर्माण कार्य भी करवाया जा सकता है। पश्चिम दिशा में दर्पण लगाना भी बहुत शुभ होता है। यहां बाथरूम भी बनवाया जा सकता है। गेस्ट रूम भी बनवाया जा सकता है। यहां स्टडी रूम भी शुभ फल प्रदान करता है।
उत्तर दिशा
इस दिशा का प्रतिनिधित्व धन के देवता करते हैं। इस वजह से यहां नकद धन और मूल्यवान वस्तुएं रखी जा सकती हैं। यहां मुख्य दरवाजा भी श्रेष्ठ फल देता है। यहां बैठक की व्यवस्था भी की जा सकती है या ओपन एरिया भी रखा जा सकता है। यहां बाथरूम भी बनवा सकते हैं। ध्यान रखें, इस दिशा में बेडरूम नहीं बनवाना चाहिए। यहां स्टोर रूम, स्टडी रूम या भारी मशीनरी नहीं होनी चाहिए।
दक्षिण दिशा
यह स्थान मृत्यु के देवता का स्थान है। यहां भारी सामान रखा जा सकता है। इस स्थान पर रसोईघर भी हो सकता है। यहां पानी का टैंक बनवा सकते हैं और सीढ़ियां बनवा सकते हैं। यहां बच्चों का कमरा नहीं बनवाना चाहिए। स्टडी रूम, बाथरूम और खिड़की नहीं होनी चाहिए। यदि इस स्थान पर बेडरूम है तो सोते समय हमारा सिर दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।
घर के मध्य का हिस्सा (ब्रह्मस्थान)
घर के बीच का हिस्सा खुला रहने से बहुत शुभ रहता है। इस स्थान पर तुलसी का पौधा लगाया जा सकता है। यहां प्रकाश के लिए पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। इस स्थान से ही पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है
ऊँ वास्तु पुरुषाय नमः
×