ज्योतिष: स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार

ज्योतिष: स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार

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  • 01/11/22

ज्योतिष: स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार

जीवन  यात्रा में हम  बहीर्गामी होते हैं और इसे ही जीवन का मूल समझ बैठते हैं ,जबकि स्थिति इसके विपरीत है । स्वयं  को जानने का प्रयास कदाचित ही करते हैं और यही हम सबसे बड़ी भूल करते हैं ।स्वयं को सर्वश्रेष्ठ रूप से जाने बिना सफलता सुनिश्चित की ही नहीं जा सकती क्योंकि हम अपने आप में संपूर्ण हैं ,स्वयं हैं ,भिन्न है यही  भिन्नता  श्रेष्ठता में स्थापित करती है।स्वयं को जानना और स्वयं को परम में स्थापित करना सफलता का सबसे बड़ा सूत्र है क्योंकि इस रूप में हम अपनी सकारात्मक शक्तियों का सर्वश्रेष्ठ लाभ ले पाते हैं।स्वयं को जानने के सफर में जो सबसे ज्यादा  सहायक हो सकता है वह है ज्योतिष। हम सभी जानते हैं “यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे “पंच तत्वों से  ब्रह्मांड की रचना हुई और वही पंचतत्व इस देह में हैं । हमें अगर ब्रह्मांड से हमारा सर्वश्रेष्ठ संतुलन करना है तो सबसे पहले हमें अपने आप में सर्वश्रेष्ठ रूप से संतुलित होना होगा ,अपने परम में स्थापित होना होगा  और यह संभव है पंच तत्वों के सुंदर संतुलन के द्वारा। पंच तत्व का संतुलन हर प्राणी में अलग-अलग मात्रा में कम या अधिक होता है और उसी आधार पर हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न है।

“यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे ”

जिस प्रकार ब्रम्हांड में 5 तत्व  आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी विद्यमान हैं, उसी तरह इस सृष्टि में सब कुछ निहित है। इसी सृष्टि से मानव शरीर का सृजन हुआ है। इन पंचभूतों का संचालन पराभौतिक शक्ति के हाथों में निहित है जिसे हम ईश्वर, प्रकृति, ब्रह्म कहते हैं। ब्रह्मांड की इसी शक्ति से ग्रहों का निर्माण हुआ और यह ग्रह मानव जीवन से जुड़ी घटनाओं के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है। अलग अलग ग्रहों के गुण, धर्म, शक्तियों का विभाजन स्वरूप इसे राशियों में विभक्त किया गया। वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहों में विद्यमान पाँच तत्व हैं परंतु 12 राशियों में 5 तत्वों की बजाय 4 तत्वो (अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु) को प्रधानता दी गई है। जबकि आकाश तत्व अनन्त और विराट स्वरूप लिए है, जिसमें सभी तत्व विद्यमान हैं। हमारे  ऋषि मुनियों ने ज्योतिष में राशियों के साथ पंचतत्वों की व्याख्या की है। जिसके अनुसार किसी भी जातक की जन्म राशि के तत्व के आधार पर हम ज्ञात कर उस अनुसार व्यवहार कर सकते हैं। राशियां ही वह माध्यम है जो हमें अपने तत्वों के बारे में जानकारी देती हैं और इन्हीं के आधार पर हर व्यक्ति का गुणधर्म ,स्वभाव एक दूसरे से अलग है।

राशि व तत्व

?️वायु तत्व – (मिथुन, तुला और कुंभ)

विद्वानों ने वायु के दो गुण माने हैं  वह है – शब्द तथा स्पर्श. स्पर्श का संबंध त्वचा से माना गया है. संवेदनशील नाड़ी तंत्र और मनुष्य की चेतना श्वांस प्रक्रिया से जुड़ी है और इसका आधार वायु है. वायु के देवता भगवान विष्णु माने गये हैं व  ग्रह शनि हैं। इस तत्व का कारकत्व स्पर्श है. इसके अधिकार क्षेत्र में श्वांस क्रिया आती है. वात इस तत्व की धातु है. यह धरती चारों ओर से वायु से घिरी हुई हो।. वायु में मानव को जीवित रखने वाली आक्सीजन गैस मौजूद होती है. जीने और जलने के लिए आक्सीजन बहुत जरुरी है।यदि हमारे मस्तिष्क तक आक्सीजन पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई तो हमारी बहुत सी कोशिकाएँ नष्ट हो सकती हैं व व्यक्ति अपंग अथवा बुद्धि से जड़ हो सकता है।वायु तत्व के प्रधान गुण परिवर्तन तथा चंचलता हैं, इस कारण यह राशियां भी परिवर्तन प्रिय तथा मानसिक रूप से सबल व प्रभावशाली होती हैं। अतः प्रसिद्धि और नाम के लिए लालायित होते  जातकों में बच्चों जैसी चंचलता, चपलता और वाक पटुता भी रहती है। वायु तत्व का असंतुलन निर्णय क्षमता में कमी, ध्यान केंद्रण में कमी , कामुक वह आस्थिर प्रवृत्ति के होते हैं ।

✨ आकाश

आकाश एक ऎसा क्षेत्र है जिसका कोई सीमा नहीं है. पृथ्वी के साथ्-साथ समूचा ब्रह्मांड इस तत्व का कारकत्व शब्द है. इसके अधिकार क्षेत्र में आशा तथा उत्साह आदि आते हैं. वात तथा कफ इसकी धातु हैं.

वास्तु शास्त्र में आकाश शब्द का अर्थ रिक्त स्थान माना गया है. आकाश का विशेष गुण “शब्द” है और इस शब्द का संबंध हमारे कानों से है. कानों से हम सुनते हैं और आकाश का स्वामी ग्रह गुरु है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी श्रवण शक्ति का कारक गुरु को ही माना गया है. शब्द जब हमारे कानों तक पहुंचते है तभी उनका कुछ अर्थ निकलता है. वेद तथा पुराणों में शब्द, अक्षर तथा नाद को ब्रह्म रुप माना गया है. वास्तव में आकाश में होने वाली गतिविधियों से गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश, ऊष्मा, चुंबकीय़ क्षेत्र और प्रभाव तरंगों में परिवर्तन होता है. इस परिवर्तन का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है. इसलिए आकाश कहें या अवकाश कहें या रिक्त स्थान कहें, हमें इसके महत्व को कभी नहीं भूलना चाहिए. आकाश का देवता भगवान शिवजी को माना गया है.

?पृथ्वी तत्व – (वृषभ, कन्या तथा मकर)

पृथ्वी अथवा भूमि के पाँच गुण शब्द, स्पर्श, रुप, स्वाद तथा आकार माने गए हैं. आकार तथा भार के साथ गंध भी पृथ्वी का विशिष्ट गुण है क्योंकि इसका संबंध नासिका की घ्राण शक्ति से है।  इसकी प्रकृति त्रिगुणात्मक (  वात, पित्त तथा कफ) पृथ्वी का स्वामी ग्रह बुध है।पृथ्वी में चुंबकीय गुण है जिसका उपयोग वास्तु शास्त्र में अधिक होता है।इस चुंबक का उपयोग वास्तु में भूमि पर दबाव के लिए किया जाता है।वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा में भार बढ़ाने पर अधिक बल दिया जाता है। इसी कारण दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है।जब पृथ्वी तत्व सन्तुलित होता है, तो इनमें ईमानदारी, चिंतन, स्थिरता व पूर्णता का गुण होता हैं और जब असंतुलित होता है तो पूर्ण संसारी और भौतिकतावादी  होते हैं। आलस्य, ईर्ष्या, चुगलखोरी, वैमनस्य बढ़ जाता है।

?️  जल तत्व – (कर्क, वृश्चिक और मीन)

जल तत्व का प्रधान गुण रस है, अतः इन जातकों में ग्रहण करने की अद्भुत क्षमता होती है। आत्म विश्लेषण / आत्म चिंतन, परदुखकातर, संवेदनशील ,खोजी स्वभाव के होते हैं,  जल तत्व ठीक है सन्तुलित होने पर चिंतनशील होते हैं। चंद्र तथा शुक्र दोनों को ही जलतत्व ग्रह माना गया है. इसलिए जल तत्व के स्वामी ग्रह चंद्र तथा शुक्र दोनो ही हैं. इस तत्व का कारकत्व रस को माना गया है. इन दोनों का अधिकार रुधिर अथवा रक्त पर माना गया है क्योंकि जल तरल होता है और रक्त भी तरल होता है. कफ धातु इस तत्व के अन्तर्गत आती है.

विद्वानों ने जल के चार गुण शब्द, स्पर्श, रुप तथा रस माने हैं. यहाँ रस का अर्थ स्वाद से है. स्वाद या रस का संबंध हमारी जीभ से है. पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जल स्त्रोत जल तत्व के अधीन आते हैं. जल के बिना जीवन संभ्हव नहीं है. जल तथा जल की तरंगों का उपयोग विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है. हम यह भी भली-भाँति जानते हैं कि विश्व की सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुई हैं. जल के देवता वरुण तथा इन्द्र को माना गया है. मतान्तर से ब्रह्मा जी को भी जल का देवता माना गया है.जल तत्व के असंतुलित होने पर यही व्यक्ति चिन्तित औऱ कुंठित रहते हैं। इसी कारण यह भावुक भी अधिक होते हैं, जिसके कारण यह स्वयं के साथ ही दूसरों के दु:ख से भी दु:खी होते हैं।

? अग्नि तत्व – (मेष, सिंह और धनु राशि)

अग्नि अर्थात उर्जा , जीवनी शक्ति ,साहस ,शौर्य नेतृत्व शक्ति जोखिम उठाने की शक्ति।जब जीवनी शक्ति का ह्रास होता है तो चेहरे का ओज और तेज खत्म होने लगता है। किसी व्यक्ति का चेहरा देखने मात्र से हैं उसके उसमें स्थित अग्नि तत्व के संतुलन का  पता लगाया जा सकता है । सूर्य तथा मंगल अग्नि प्रधान ग्रह है।अग्नि में ही रूप परिवर्तन की क्षमता ही होती है, जिससे उसमें निखार आता है और परिस्थितियो को बदलने का सामर्थ्य भी अग्नितत्व में ही होता है।उसी प्रकार अग्नि तत्व प्रधान राशियो में  शक्ति, साहस, सामर्थ्य ,जोखिम उठाने की क्षमता व नेतृत्व की अद्भुत होती है । अग्नि महाभूत / तत्व (मेष, सिंह और धनु राशि) के जातक बड़े से बड़े कार्य भी अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के आधार पर कर सकते हैं। ऐसे जातक जब अग्नि ऊर्जा से सन्तुलित होते हैं, तो वाणी में ओज और चेहरे पर तेज होता है और अपने असंतुलित रूप  में यह ऊर्जा जातक को द्वेषपूर्ण, झगड़ालू, मतलबी और कटु भाषी  बनाती है हैं।

पंचतत्व मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं. उनके बिना मानव तो क्या धरती पर रहने वाले किसी भी जीव के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है. इन पांच तत्वों का प्रभाव मानव के कर्म, प्रारब्ध, भाग्य तथा आचरण पर भी पूरा पड़ता है. जल तत्व यदि असंतुलित है तो उसे आकाश और वायु तत्व के द्वारा , वायु तत्व के असंतुलन को जल व अग्नि तत्व के द्वारा ,  अग्नि से, अग्नि तत्व को आकाश और पृथ्वी से, पृथ्वी तत्व के असंतुलन को अग्नि और आकाश से तथा आकाश तत्व के असंतुलन को पृथ्वी और जल से संतुलित करने का प्रयास करें ।पर इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म विश्लेषण आवश्यक है। पंच तत्वों का संतुलन ना केवल देह में बल्कि हमारे घर में भी होना चाहिए तभी जीवन सुखी, समृद्ध, सफल  व संतुलित होता है और हम स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार कर पाते हैं । स्वयं को श्रेष्ठता से जानना और जानकर अपनी श्रेष्ठ शक्तियों को परम व चरम तक पहुंचाना ही सफलता का पहला सूत्र है।

ॐ असतो मा सद्गमय।

तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मामृतं गमय ॥

ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥

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